Home इतिहास पुराण क्या है ज्ञानवापी और काशी विश्वनाथ का रहस्य ?

क्या है ज्ञानवापी और काशी विश्वनाथ का रहस्य ?

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आधुनिक सम्प्रदायों में स्वामीनारायण सम्प्रदाय के अर्वाचीन ग्रन्थ, सपादलक्षोत्तरश्लोकी लक्ष्मीनारायण संहिता में ज्ञानवापी का उल्लेख मिलता है। यद्यपि यह कृति सार्वभौमिक सनातन शास्त्रजगत् में मान्य नहीं है किन्तु फिर भी मैं पहले अर्वाचीन प्रमाण ही रखूंगा क्योंकि इस प्रसङ्ग की साम्यता अन्य मान्य प्राचीन शास्त्रों में मिलती है। लक्ष्मीनारायणसंहिताकार श्रीकृष्णवल्लभाचार्य जी, जो आधुनिक विश्व के अतिशिक्षित विद्वानों में परिगणित होते हैं, लिखते हैं –

कुरुक्षेत्रं हाटकेशक्षेत्रं प्रभासक्षेत्रकम्।
यथोक्तविधिना कृत्वा जनः पापात् प्रमुच्यते॥
प्रथमं पुष्करारण्यं नैमिषारण्यमित्यपि।
धर्मारण्यं तृतीयञ्च सर्वेष्टफलदायकम्॥
वाराणसीपुरी त्वेका द्वितीया द्वारकापुरी।
तृतीयाऽवन्तिकापूश्च यथेष्टफलदायिनी॥
वृन्दावनं द्वैतवनं तथा च खाण्डवं वनम्।
स्नानाद्वासात्स्वर्गमोक्षप्रदं पापविनाशकम्॥
कालग्रामः शालग्रामो नन्दिग्रामस्तृतीयकः।
इन्द्रियग्रामतृष्णानां ध्वंसको मोक्षदस्तथा॥
अग्नितीर्थं शुक्लतीर्थं पितृतीर्थं तृतीयकम्।
तत्र स्नानाद्भुक्तिमुक्ती लभते मानवो ध्रुवम्॥
श्रीपर्वतश्चाऽर्बुदाद्री रैवताचल इत्यपि।
यात्राकर्ता स्वर्गभोक्ता पश्चान्मुक्तिप्रगो भवेत्॥
गङ्गानदी नर्मदाख्यानदी सरस्वतीनदी।
स्नानाद्भुक्तिस्तथा मुक्तिस्तथेष्टं सर्वदा ददेत्॥
ज्ञानवापी च कुङ्कुमवापी रोहणवापिका।
जलपानाद्भवेन्मुक्तिर्वापीत्रयं हि पावनम्॥
नारायणसर इन्द्रसरो मानसकं सरः।
सरस्त्रयं भुक्तिमुक्तिप्रदं स्नानाद्भवत्यपि॥
(लक्ष्मीनारायणसंहिता, कृतयुगसन्तानखण्ड, अध्याय – ५१४, श्लोक – ०३-१२)

श्लोकों का भाव यह है कि तीन क्षेत्र (कुरुक्षेत्र, हाटकेशक्षेत्र एवं प्रभासक्षेत्र), तीन अरण्य (पुष्करारण्य, नैमिषारण्य एवं धर्मारण्य), तीन पुरी (वाराणसीपुरी, द्वारकापुरी एवं अवन्तिकापुरी), तीन वन (वृन्दावन, द्वैतवन एवं खाण्डववन), तीन ग्राम (कालग्राम/कलापग्राम, शालग्राम एवं नन्दिग्राम), तीन तीर्थ (अग्नितीर्थ, शुक्लतीर्थ एवं पितृतीर्थ), तीन पर्वत (श्रीशैल, अर्बुदाचल/माउण्ट आबू, रैवत पर्वत), तीन नदी (गङ्गा, नर्मदा एवं सरस्वती), तीन वापी (ज्ञानवापी, कुङ्कुमवापी एवं रोहणवापी), तथा तीन सरोवर (नारायण सरोवर, इन्द्रसरोवर एवं मानसरोवर) का सेवन करने वाला व्यक्ति समस्त कामनाओं का उपभोग करके मोक्ष को प्राप्त होता है।

अब सर्वमान्य शास्त्रीय प्रमाणों पर आते हैं।

असीवरुणयोर्मध्ये पञ्चक्रोश्यां महाफलम्।
अमरा मृत्युमिच्छन्ति का कथा इतरे जनाः॥
मणिकर्ण्यां ज्ञानवाप्यां विष्णुपादोदके तथा।
ह्रदे पञ्चनदे स्नात्वा न मातुः स्तनपो भवेत्॥
प्रसङ्गेनापि विश्वेशं दृष्ट्वा काश्यां षडानन।
मुक्तिः प्रजायते पुंसां जन्ममृत्युविवर्जिता॥
(स्कन्दपुराण, वैष्णवखण्ड, बदरिकाश्रममाहात्म्य, अध्याय – ०१, श्लोक – २९-३१)

अर्थात् – हे कार्तिकेय ! असी और वरुणा के मध्यभाग में पांच कोश के परिमाण वाले क्षेत्र का महान् फल है। यहाँ देवता भी मृत्यु पाने की कामना करते हैं, अन्य सामान्यजनों की क्या बात करें। मणिकर्णिका, ज्ञानवापी, विष्णुपादोदक (गङ्गा) और पञ्चनद सरोवर में स्नान करने के बाद व्यक्ति पुनः माता का स्तनपान नहीं करता (उसका पुनर्जन्म नहीं होता है)। संयोगवश भी काशी में लोग भगवान् विश्वेश्वर का दर्शन कर लें तो जन्म और मृत्यु से छुटकारा देने वाली मुक्ति उनमें उत्पन्न हो जाती है (उनका मोक्ष हो जाता है)।

जैसा कि भगवान् शिव स्वयं बताते हैं –

जलक्रीडां सदा कुर्यां ज्ञानवाप्यां सहोमया।
यदम्बुपानमात्रेण ज्ञानं जायेत निर्मलम्॥
तज्जलक्रीडनस्थानं मम प्रीतिकरं महत्।
अमुष्मिन्राजसदने जाड्यहृज्जलपूरितम्॥
तत्प्रासादपुरोभागे मम शृङ्गारमण्डपः।
श्रीपीठं तद्धि विज्ञेयं निःश्रीकश्रीसमर्पणम्॥
(स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, अध्याय – ७९, श्लोक – ६८-७०)

अर्थात् – “जिसके जल को पीने मात्र से निर्मल ज्ञान उदय हो जाता है, उस ज्ञानवापी में मैं उमा (पार्वती) के साथ सदैव जलक्रीड़ा करता हूँ। मेरी जलक्रीड़ा का वह स्थान मुझे बहुत प्रसन्नता देता है। इसी राजमहल में जड़ता का हरण करने वाला जल से भरा वह स्थान है। उसके सामने मेरा शृंगारमण्डप है, जिसे निर्धनों को धन प्रदान करने वाला श्रीपीठ समझना चाहिये।