Home इतिहास पुराण क्या बुद्ध भगवान् विष्णु के अवतार थे ?

क्या बुद्ध भगवान् विष्णु के अवतार थे ?

4318

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मैं ब्रह्मा विष्णु महेश आदि किसी देवता को नहीं मानूंगा।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् तथागत बुद्ध बोधिसत्व वज्रगर्भ से –
इन्द जम जल जक्ख भुत वह्नि वायु रक्ख।
चन्द सुज्ज माद बप्प तलपाताले अट्ठसप्प स्वाहा॥
(हेवज्रतन्त्र, हेवज्रसर्वतन्त्रमुद्रणपिण्डार्थ, श्लोक – ९१)

इन्द्र, यम और जल हमारी रक्षा करें। भूत, अग्नि, वायु भी रक्षा करें। चन्द्र, सूर्य, पृथ्वी और ब्रह्मा, नीचे पाताल में अष्टसर्प भी रक्षा करें।

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मैं ओमकार आदि पर विश्वास नहीं करता हूँ।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् तथागत बुद्ध बोधिसत्व वज्रगर्भ से कहते हैं –

ओं अकारो मुखं सर्वधर्माणामाद्यनुत्पन्नत्वात्॥
(हेवज्रतन्त्र, हेवज्रसर्वतन्त्रमुद्रणपिण्डार्थ, श्लोक – ९३)

ओंकार सभी धर्मों का मुख है, क्योंकि यह सभी धर्मों का उत्पत्ति स्थान है।

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि किसी को नहीं मानता और उनकी पूजा नहीं करता।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् तथागत बुद्ध बोधिसत्व वज्रगर्भ से कहते हैं –

ब्रह्मेन्द्रोपेन्द्ररुद्राश्च वैवस्वत विनायकः।
नैर्ऋतिर्वेमचित्री च गौर्यादीनां तु विष्टरम्॥

(हेवज्रतन्त्र, हेवज्राभ्युदय, श्लोक – ३७)

ब्रह्मा, इन्द्र, उपेंद्र (विष्णु), रुद्र (महेश), वैवस्वत (यम), विनायक (गणेश), नैर्ऋति, वेमचित्री ये सब गौरी के आसन हैं।

श्रीदेवी के सिंहासन के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ईश्वर और सदाशिव का तात्विक वर्णन सनातन धर्म भी करता है।

ब्रह्मा विष्णुश्च रुद्रश्च ईश्वरश्च सदाशिवः।
एते पञ्चमहाप्रेता: स्थिता: सिंहासनादधः॥
(महाकालसंहिता)

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मूर्तिपूजा आदि पाखण्ड है, ग्रहों की पूजा अंधविश्वास है।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् चण्डमहारोषण भगवती द्वेषवज्री से कहते हैं –

एवं वेणुमयं गन्धर्वं साधयेत्, वाल्मीकमृण्मयं गरुडं, देवदारुमयान् देवान् ब्रह्मविष्णुमहेश्वरेन्द्रकामदेवादीन्…… एवं सूर्यं चन्द्रं मङ्गलं बुधं बृहस्पतिं शुक्रं शनैश्चरं राहुं केतुं च नवग्रहम्॥
(श्रीचण्डमहारोषणतन्त्र, द्वादश पटल, श्लोक – १७-१८)

इस प्रकार बांस के बने हुए गन्धर्व, दीमक की बाम्बी की मिट्टी के बने गरुड़, देववृक्षों (देवदार, पीपल, आम, नीम, बरगद, पलाश, शमी आदि) की लकड़ी के बने हुए ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र, कामदेव आदि ….. और इसी प्रकार से सूर्य, चन्द्र, मङ्गल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु एवं केतु की साधना करे।

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मैं स्वर्ग नरक आदि में विश्वास नहीं करता हूँ। देवी देवता नहीं होते हैं।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् मैत्रेय बुद्ध का शारिपुत्र आदि के प्रति उपदेश –

देवानां दिवि दिव्यदुन्दुभिरवो यद्वत् स्वकर्मोद्भवो।
धर्मोदाहरणं मुनेरपि तथा लोके स्वकर्मोद्भवम्॥
(महायानोत्तरतन्त्रशास्त्र, कृत्यक्रियाधिकार, श्लोक – ३४)

देवताओं का स्वर्ग में दिव्यदुन्दुभि का स्वर जैसे उनके अपने कर्मों के प्रभाव से जन्य है, उसी प्रकार भगवान् के धर्म का घोष भी लोक में उनके अपने कर्मों के ही कारण है।

गुरुभक्ति से रहित, अयोग्य, रहस्य को अनधिकारी के समक्ष प्रकाशित करने वाले शिष्य की गति भगवान् चण्डमहारोषण भगवती द्वेषवज्री से कहते हैं –

यमदूतैस्ततो ग्रस्तः कालपाशवशीकृतः।
नरकं नीयते पापी यदि बुद्धैरपि रक्षितः॥
यदि कर्मक्षयाद्दुःखं भुक्त्वा च लक्षवत्सरम्।
मानुष्यं प्राप्यते जन्म तत्र वज्रेण भिद्यते॥
(श्रीचण्डमहारोषणतन्त्र, तन्त्रावतार पटल, श्लोक – १३-१४)

यमदूतों के द्वारा पकड़े जाने बाद कालपाश में बंधकर वह पापी नरक में ले जाया जाता है। यदि साक्षात् बुद्ध भी चाहें तो उसकी रक्षा नहीं कर सकते। उसके बाद नरक में उस दुःख को एक लाख वर्षों तक भोगने पर जब कर्मक्षय होता है, और यदि मनुष्य जन्म में आ जाता है तब भी यहां उसके ऊपर वज्रपात हो जाता है।

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मैं ध्यान, योग आदि में विश्वास नहीं करता। विचित्र आकृति वाले देवी देवताओं का ध्यान अंधविश्वास है।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् सर्वतथागत कायवाक्चित्त वज्राधिपति वज्रधर ने तथागत अक्षोभ्यवज्र, तथागत वैरोचनव्रज, तथागत अमितायुवज्र, तथागत रत्नकेतुवज्र, एवं तथागत अमोघसिद्धिवज्र को इसी जन्म में बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए जिन देवताओं के जिस रूप के ध्यान का उपदेश किया, उनमें से एक उदाहरण देखें –

हयग्रीवं महाक्रोधं कल्पोद्दाहमिवोद्भवम्।
त्रिमुखं दुष्टपदाक्रान्तं भावयेद्योगभावतः॥
(श्रीगुह्यसमाजतन्त्र, त्रयोदश पटल, श्लोक – ९८)

कल्पों को दहन करने के समान तेज से युक्त, महाक्रोधयुक्त तीन मुखों से युक्त, दुष्टों को पैरों के नीचे रौंदते हुए, भगवान् हयग्रीव का योगबल से ध्यान करना चाहिए।

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – मैं पुनर्जन्म आदि में विश्वास नहीं करता हूँ। देवताओं की पूजा, हवन आदि पाखण्ड है। भूत और भविष्य की घटनाओं को जानने का दावा करने वाले अंधविश्वासी हैं।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् कृष्णयमारि ने मैत्रेय आदि सर्वतथागत बुद्धों को उपदेश करते हुए कहा –

दुष्टमैत्री सदा त्याज्याऽधर्मं नैव प्रमाणयेत्।
श्राद्धसत्वं न वै वञ्चेत् समयान्सेवयेत् सदा॥
स्त्रीणां प्रज्ञास्वभावानां दूषणाद्दोष एव च।
भिक्षां नैवभ्रमेद्योगी योगं नैव विवर्जयेत्॥
(श्रीकृष्णयमारितन्त्र, सप्तदश पटल, १५-१६)

योगी को चाहिए कि दुष्टों से मित्रता करना छोड़ दे, अधर्म को प्रमाण मानकर आचरण न करे, श्रद्धायुक्त कर्म से वञ्चित न रहे और समयानुसार इन्द्रियों का संयमन करे। स्त्रियों एवं विद्वानों की निंदा न करें क्योंकि इससे दोष लगता है। केवल भिक्षा मांगने के लिए ही भ्रमण न करे, साथ ही योगाभ्यास का कभी परित्याग न करे।

भगवान् शाक्यमुनि गौतम बुद्ध उपदेश करते हैं –
प्रतिसेनां यथादर्शे कुमारी पश्येदवस्तुजाम्।
अतीतानागतं धर्मं तत्वयोग्यम्बरे तथा॥
(कालचक्रतन्त्र, षडङ्गयोगप्रकरण, श्लोक – ०६)

जैसे आईने में कुमारी अपनी प्रतिसेना में अनेक अप्रत्यक्ष वस्तुओं को देखती हैं, जहां वस्तुतः कोई पदार्थ नहीं होता है, वैसे ही योगीजन भी आकाश में अतीत (भूतकाल) एवं अनागत (भविष्य) के पदार्थों को देखते हैं।

(प्रतिसेनावतार तन्त्र में आईना, खड्ग, अंगूठा, दीपक, चन्द्र, सूर्य, जल, कुण्ड एवं नेत्र आदि आठ पदार्थों को प्रतिसेना कहा गया है)

दुःखाद्धातुक्षयः पुंसां क्षयान्मृत्यु रिति स्मृतः।
मृत्यो: पुनर्भवस्तेषां भवान्मृत्युश्च्युतिः पुनः॥
(कालचक्रतन्त्र, मलप्रकरण, नरोत्तमपादविरचिता सेकोद्देशटीका, श्लोक – ११-१२)

दुःख से धातुक्षय, धातुक्षय से मृत्यु होती है। मृत्यु से पुनर्जन्म होता है और पुनर्जन्म के बाद फिर मृत्यु और उससे च्युति (पतन) होती है।

भगवान् शाक्यमुनि गौतम बुद्ध ने दीपङ्कर बुद्ध के द्वारा पूर्वकाल में दिए गए मन्त्रोपदेश को शम्भलपुर के राजा सुचन्द्र के अनुरोध पर उन्हें देवताओं के पूजन की विधि का उपदेश करते हुए जो कहा, उसपर बौद्ध विद्वान् नरोत्तमपाद (नारोपापाद) की टीका देखें –

सर्वेषां नामपूर्वं प्रणवं देयम्। अर्चने सर्वकर्मणि नमोऽन्ते नाम्नो भवति। प्रत्येकं कर्मणि पुष्ट्यादौ स्वाहान्तो वेदितव्य इति।
(कालचक्रतन्त्र, दीक्षाप्रकरण)

सभी देवताओं के नाम से पहले ॐ लगाना चाहिए। पूजा के अवसर में नामों के अन्त में नमः लगाना चाहिए। प्रत्येक पुष्टि कर्म में स्वाहा लगाना होता है।

(नेपाल के अभिलेखागार में स्थित देववर्मा के द्वारा लिखित सिद्धचरितम् की हस्तलिखित प्रति के अनुसार नरोत्तमपाद चौरासी बौद्ध सिद्धों में एक हैं। ये कश्मीरी ब्राह्मण थे एवं वहां के राजपुरोहित भी थे। इनका नाम बौद्ध गुरु तिलिप्पा से दीक्षा लेने बाद नारोपापाद हो गया था। कहीं कहीं लोग इन्हें शुभवर्मा नामक राजा के पुत्र अथवा कुछ लोग शूद्रवर्ण के व्यक्ति के रूप में भी जानते हैं)

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – सभी लोग समान हैं, वर्णव्यवस्था एवं जातिव्यवस्था काल्पनिक और अंधविश्वास से भरी हुई है।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – मायापुत्र चण्डरोषण को भगवती प्रज्ञापारमिता, जातियों का वर्णन करते हुए उपदेश करती हैं –

ब्राह्मणी क्षत्रिणी वैश्या शूद्री चात्यन्तविस्तरा।
कायस्थी राजपुत्री च शिष्टिनी कर-उत्तिनी॥
वणिजिनी वारिणी वेश्या च तरिणी चर्मकारिणी।
कुलत्रिणी हत्रिणी डोम्बी चाण्डाली शवरिणी तथा॥
धोबिनी शौण्डिनी गन्धवारिणी कर्मकारिणी।
नापिती नटिनी कंसकारिणी स्वर्णकारिणी॥
कैवर्ती खटकी कुण्डकारिणी चापि मालिनी।
कापालिनी शंखिनी चैव वरुडिनी च केमालिनी॥
गोपाली काण्डकारी च कोचिनी च शिलाकुटी।
थपतिनी केशकारी च सर्वजातिसमावृता॥
(श्रीचण्डमहारोषणतन्त्र, स्वरूपपटल, श्लोक – ०४-०९)

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि जातियां हैं। इसके अतिरिक्त विस्तार में समझने के लिए कुछ उदाहरण हैं – कायस्थ, राजपुत्र (राजपूत आदि), …… वेश्या ….. चमार …. डोम …. चाण्डाल …. शबर (वनवासी) ….. धोबी …. इत्र का काम करने वाले गन्धी, लोहार, नाई, अभिनय करने वाले नट, कांसे का काम करने वाले ठठेरा, सुनार, मल्लाह-केवट, खटीक, खुदाई करने वाले खनिक, माली ….. ग्वाला, शस्त्र बनाने वाले कर्मकार/कर्माकर, पत्थर तोड़ने वाले….. कुशियार …. आदि आदि सभी जातियां हैं। (यहां जाति शब्द के कारण एवं देवीरूप से व्याख्या होने से सभी जातियों के स्त्रीलिंग नाम श्लोक में वर्णित हैं)

नवबौद्ध अम्बेडकरवादी – धर्म कुछ नहीं है। धर्म केवल काल्पनिक है और अंधविश्वास है।

बुद्धवाक्यों से खण्डन – भगवान् तथागत मैत्रेय बुद्ध धर्म की दुर्गम्यता को बताते हुए उपदेश करते हैं –

यथा सूक्ष्मान् शब्दाननुभवति न श्रोत्रविकलो,
न दिव्यश्रोत्रेऽपि श्रवणपथमायान्ति निखिलम्।
तथा धर्मः सूक्ष्मः परमनिपुणज्ञानविषयः,
प्रयात्येकेषां तु श्रवणपथमक्लिष्टमनसाम्॥
(महायानोत्तरतन्त्रशास्त्र, कृत्यक्रियाधिकार, श्लोक – ४१)

जैसे कान खराब हो जाने पर व्यक्ति सूक्ष्म शब्दों को नहीं सुन सकता, और दिव्य कान के होने और भी सभी विषय नहीं सुने जाते सकते। (रूप, रस, गन्ध आदि अश्रौत विषयों को दिव्य कान भी ग्रहण नहीं करते) उसी प्रकार धर्म अत्यंत सूक्ष्म है, अत्यंत निपुण व्यक्ति को ही इसका ज्ञान हो सकता है। यह वस्तुतः अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि एवं शान्त मन वालों के द्वारा ही सुना और समझा जा सकता है।

यावजीवम्पि चे बालो पण्डितं पायिरुपासति।
न सो धम्मं विजानाति दब्बी सूप रसं यथा॥
मुहूत्तमपि चे विञ्ञू पण्डितं पयिरुपासति।
खिप्पं धम्मं विजानाति जिव्हा सूपरसं यथा॥
(धम्मपद, बाल-वग्गो, श्लोक – ०५-०६)

भगवान् शाक्यमुनि गौतम बुद्ध उपदेश करते हैं –
मूर्ख व्यक्ति चाहे जन्मभर पण्डितों की संगति में रहे, वह सच्चे धर्म को नहीं जान सकता, जैसे कड़छी दाल में डूबी रहकर भी उसके स्वाद को नहीं जानती। बुद्धिमान् व्यक्ति चाहे मुहूर्तमात्र के लिए भी पण्डितों की संगति में रहे, वह सच्चे धर्म को जान लेता है, जैसे जिह्वा दाल के स्वाद को।

यहाँ एक छोटी शंका हो सकती है कि जब गौतम बुद्ध स्वयं भगवान् विष्णु के ही अवतार हैं, तब उनके इतने जन्मों का वर्णन क्यों है ? इसका उत्तर है कि अर्जुन भी नारायणभ्राता नर के अवतार थे किन्तु पराशर संहिता में उनके भी विजयसंज्ञक पूर्वजन्म का वर्णन है। भगवान् नारद जी भी विष्णु के अवतार हैं, किन्तु गन्धर्वकुल, शूद्रकुल आदि में उनके पूर्वजन्म का वर्णन श्रीमद्भागवत में वर्णित है। आवेशावतार, अंशावतार आदि में ऐसा होना सामान्य बात है, क्योंकि इनमें जीवांश भी होता है जो कर्मप्रारब्ध का निर्माण करता है।

उपर्युक्त सभी ग्रंथों को बौद्धों के सर्वोच्च धर्मगुरु दलाई लामा समेत सभी मान्य प्राचीन एवं नवीन बौद्ध विद्वानों का पूर्ण समर्थन और प्रामाणिकता प्राप्त है। चौदहवें दलाई लामा तो कालचक्रतन्त्र आदि के प्रचार प्रसार और अनुसरण में ही पूरा जीवन लगा दे रहे हैं। बुद्ध के नाम पर देश में वैमनस्य एवं धर्मद्रोह की शृंखला प्रारम्भ करने वाले राजनैतिक गृद्धों को यदि भगवान् शाक्यमुनि गौतम, मैत्रेय, यमारि, अमिताभ बुद्ध आदि के ही उपदेशों के शास्त्रोक्त प्रारूप के अध्ययन का अवसर मिल जाये तो उनका कुछ कल्याण ही होगा। अंत मैं नारायण कवच के वचन के अनुसार यह प्रार्थना करता हूँ कि भगवान् विष्णु के अवतार सभी बुद्ध पाखण्ड एवं आलस्य से हमारी रक्षा करें – बुद्धस्तु पाखण्डगणात्प्रमादात्॥

श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु
His Holiness Shri Bhagavatananda Guru